Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 10

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 10

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 10


ओ३म् विसमिल्ला रहमान रहीम, जिहिं कै सदकै भीना भीन।

भावार्थ- विसमिल्ला तो रहम-दया भाव रखने वाले स्वयं विष्णु अवतारी राम ही है। उनका मार्ग तो तुम्हारे से भिन्न ही था। वर्तमान में तुमने जो जीव हत्या का मार्ग अपना रखा है यह तुम्हारा मनमुखी है। उनको बदनाम मत करो।


तो भेटिलो रहमान रहीम, करीम काया दिल करणी।

सभी पर रहम करने वाले श्री राम एवं गोपालक श्री कृष्ण को दिल रूपी हृदय गुहा में स्थिर करके फिर कोई शुभ कार्य करोगे तभी तुम्हारा कार्य सुफल होगा। उस रहीम से भेंट मिलन भी हो सकेगा।


कलमा करतब कौल कुराणों, दिल खोजो दरबेश भइलो तइयां मुसलमानों|

शुभ कर्तव्य कर्म करना ही कलमा रखना है और प्रतिज्ञा निभाना ही कुराण पढ़ना है तथा यही पीर पैगम्बरों का आदेश है। जो व्यक्ति अपने ही अन्तःकरण में छिपे हुऐ अवगुणों को खोजकर उनको बाहर निकाल देता है एवं शुद्ध पवित्र हो जाता है वही सच्चा मुसलमान है तथा वही दरवेश है।


पीरां पुरूषां जमी मुसल्ला, कर्तब लेक सलामों।

पीर पुरूष और सभी एकत्रित हुए मुसलमानों आप लोग आपस में एक दूसरे के प्रति सलाम कहते हो यह भी तुम्हारी सलाम व्यर्थ ही है क्योंकि जब तक नेक कमाई नहीं करोगे तब तक तुम्हारा कभी भी कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है। कथनी और करनी में एकता ही जीवन में सुख का मूल है। वास्तविक सलाम तो नेक कमाई है।


हम दिल लिल्ला तुम दिल लिल्ला, रहम करे रहमाणों। 

हमारे दिल में वह लीलाधारी परमेश्वर है और तुम्हारे दिल में भी वही विराजमान है क्योंकि वह रहम करने वालों में सर्वश्रेष्ठ है। अर्थात् जो एक हिन्दू महात्मा को मानव शरीर दिया है उसी ने ही मुसलमान को भी वही अमूल्य मानव चोला दिया है तथा स्वयं ही उसमें प्रवेश भी हुआ है।


इतने मिसले चालो मीयां, तो पावो भिस्त इमाणों।

हे मियां! ऊपर बताये हुए मार्ग नियमों पर चलोगे तो भिस्त स्वर्ग प्राप्त कर सकते हो। जिस की प्राप्ति के लिये दिन-रात प्रयत्न शील दिखाई देते हो।

 

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 9 | श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी भावार्थ - शब्द 09

 Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 9

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 9


ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो। 

भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल शुद्ध सात्विक विकार रहित है तो तुम्हारे काबे का हजा नजदीक ही है अर्थात् हृदय ही तुम्हारा काबै का हज है तो फिर क्यों मकानों की दिवारों पर चढ़कर ऊंची आवाज से उस अल्ला की पुकार करते हो, यह तुम्हारी बेहूदी उलबंग तुम्हारा अल्ला नहीं सुन सकेगा क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है।



भाई नाऊ बलद पियारो, ताकै गलै करद क्यूं सारों।

अपने प्रियजन भाई से भी हल चलाने वाला बैल प्रिय होता है, भाई मौके पर कभी भी जबाब दे सकता है किन्तु वह भोला-भाला बैल कभी भी संकट की घड़ी में जबाब नहीं देगा। आप लोग महा मूर्ख हो जो उस बैल के गले पर भी करद चलाते हो, यदि आप लोग जरा भी सोच-समझ रखते हो तो फिर ऐसा क्यों करते हो।


बिन चीन्है खुदाय बिबरजत, केहा मुसलमानों।

तुम लोगों ने ईश्वर को तो पहचाना नहीं है। उस खुदा ने भी तो जीव हत्या करना मना किया है फिर भी जीव हत्या करते हो, तो तुम सच्चे मुसलमान कैसे हो सकते हो। शिष्य यदि गुरु का कहना नहीं माने तो फिर कैसा गुरु और कैसा शिष्य।


काफर मुकर होकर राह गुमायो, जोय जोय गाफिल करें धिंगाणों।

अपने गुरु के वचनों को छोड़कर आप लोग वास्तव में काफिर-नास्तिक हो चुके हो और अपने पथ से भ्रष्ट होकर जबरदस्ती करते हो। वास्तव में अपने मार्ग का पता तो तुम्हें है किन्तु जानते हुऐ भी अनजान बनकर पाप कर्म करने में प्रवृत हो गये, यही तुम्हारी जबरदस्ती है।


ज्यूं थे पश्चिम दिशा उलबंग पुकारो, भल जे यो चिन्हों रहमाणों।

जिस प्रकार से आप लोग पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बड़े जोर से हेला(आवाज) मारते हो ठीक उसी प्रकार से यदि उस दया-ज्ञान सिन्धु रहम करने वाले परमेश्वर को सच्चे दिल से याद करो तो तुम्हारा भला होना निश्चित ही है।


तो रूह चलंते पिण्ड पड़ंतै, आवै भिस्त विमाणों।

यदि आप लोग सच्चे मन से नमाज की तरह ही परमात्मा का स्मरण करो तो जब यह आत्मा शरीर से विलग हो जायेगी यह शरीर गिर जायेगा, उस समय स्वर्ग से विमान तुम्हारे लिये अवश्य ही आयेगा।


चढ़ चढ़ भींते मड़ी मसीते, क्या उलबंग पुकारो।

बीना सच्चाई के तो केवल भींत, मेड़ी , मस्जिद आदि पर चढ़कर पुकार करने से कोई लाभ नहीं कभी स्वर्ग की आशा नहीं करना।


कांहे काजै गऊ विणासै, तो करीम गऊ क्यूं चारी।

भगवान श्री कृष्ण ने गऊवें चराई थी यदि गउवों को मारना ही इष्ट होता तो वे समर्थ पुरूष कभी भी गउवें नहीं चराते। अब तक तो यहां संसार में एक भी गऊ जीवित नहीं होती तो फिर तुम लोग क्यों गउवों का विनाश करते हो।


कांही लीयो दूधूं दहियूं, कांही लीयूं घीयूं महीयूं।

कांही लीयूं हाडूं मासूं, काहीं लीयूं रक्तूं रूहियूं।

यदि तुम लोग गऊवों का विनाश करना ठीक मानते हो तो फिर उनका अमृतमय दूध, दही, घी , मेवा आदि क्यों ग्रहण करते हो? इन वस्तुओं से सदा परहेज रखो और यदि घी, दूध आदि ग्रहण करते हो तो फिर उनके हाड़, मांस, रक्त और जीव को क्यों खा जाते हो? यह तुम्हारा न्याय नहीं हो सकता।


सुणरे काजी सुणरे मुल्ला, यामै कोण भया मुरदारूं।

रे काजी, रे मुल्ला! ध्यानपूर्वक सुनों! इसमें मुर्दा कौन हुआ? मारने वाला या मरने वाला? यहां तो ऐसा ही लगता है कि मुर्दे को खाने वाला ही मुर्दा(मृत) है। जो मर चुका है वह तो नया शरीर धारण कर ही लेगा, किन्तु मरे हुऐ को खाने वाला तो रोज मुर्दा-मृत होता है अर्थात् तुम लोग सभी मुर्दे हो।

जीवां ऊपर जोर करीजै, अंत काल होयसी भारूं।

इस समय यदि जीवों पर जोर जबरदस्ती करते हो तो अन्त समय में तुम्हारे लिये मुश्किल पैदा हो जायेगी। तुम्हारा यह जीवन मूल ही नष्ट हो जायेगा।


Shri Guru Jambheshwar Shabdvani - Shabd 8 | श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी भावार्थ : (शब्द 08)

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 8

Shri Guru Jambheshwar Shabdvani Shabd 8


श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी भावार्थ : (शब्द 08)

 ओझ्म् सुण रे काजी सुण रे मुल्ला, सुण रे बकर कसाई। 

भावार्थ- भावार्थ-बकरी आदि निरीह जीवों की हत्या करने वाले कसाई रूपी काजी, , मुल्ला तुम लोग मेरी बात को ध्यान पूर्वक श्रवण करो।

किणरी थरपी छाली रोसो, किणरी गाडर गाई।

किस महापुरूष पैगम्बर ने यह विध्धान बनाया है कि तुम काजी मुल्ला मुसलमान या हिन्दू मिलकर या अलग-अलग इन बेचारी भेड़-बकरी और माता तुल्य गऊ के गले पर छुरी चलावो अर्थात् ऐसा विधान किसी ने नहीं बनाया तुम मनमुखी हो तथा अपना दोष छिपाने के लिये किसी महापुरूष को बदनाम मत करो।

सूल चुभीजै करक दुहैली, तो है है जायों जीव न घाई।

यदि तुम्हारे शरीर में कांटा चुभ जाता है तो भी दर्द असह्य हो जाता है फिर बेचारे जन्मे जीव ये भी तो शरीर ध्धारी है इनके गले पर छुरी चलाते हो कितना कष्ट होता है। सभी प्राणी जीना चाहते है मृत्यु भयंकर है, , उस दुखदायी अवस्था में इन मूक प्राणियों को आप पहुंचा देते है इससे बढ़कर और क्या कष्ट होगा, यही बड़े दुख की बात है।

थे तुरकी छुरकी भिस्ती दावों, खायबा खाज अखाजूं।

आप लोग मुसलमान है और हाथ में छुरी रखते है तथा अखाद्य मांस आदि का खाना खाते है फिर भी स्वर्ग में जाने का दावा करते है, यह असंभव है।

चर फिर आवै सहज दुहावै, तिसका खीर हलाली।

जो गऊ, भेड़, बकरी आदि वन में घास चरकर आती है और स्वाभाविक रूप से अमृत तुल्य दूध्ध देती है और उस दूध्ध से खीर, घी, दही आदि बनते है वह तो तुम्हारी हक की कमाई है किन्तु-

जिसके गले करद क्यूं सारो, थे पढ़ सुण रहिया खाली।

अन्याय द्वारा उन पर करद की मार क्यों करते हो, , आप लोग कुरान आदि पढ़-सुन कर भी खाली ही रह गये, कुछ भी नहीं समझ सके।


Shri Guru Jambheshwar Shabdvani ( Shabd 7 )


श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी भावार्थ - शब्द 07 |Shri Guru Jambheshwar Sabadvani - Sabad 7

Shri Guru Jambheshwar Sabadvani - Sabad 7




श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी भावार्थ (शब्द 07)

ॐ हिन्दू होय कै हरि क्यूं न जंप्यों, कांय दहदिश दिल पसरायों।

भावार्थ- हिन्दू होने का अर्थ है कि भगवान विष्णु से सम्बन्ध स्थापित करना। विष्णु निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण करना तथा विष्णु परमात्मा का अनुमान करना, तथा विष्णु परमात्मा का स्मरण करना। यदि हिन्दू होय कर यह कर्तव्य तो किया नहीं और मन इन्द्रीयों को दसों दिशाओं में भटकाते रहे तो फिर तुम कैसे हिन्दू हो सकते थे।

सोम अमावस आदितवारी, कांय काटी बन रायों।

आप लोग हिन्दू होकर भी चन्द्रमा के रहते, अमावस्या के समय तथा सूर्यदेव के समक्ष हरे वृक्षों को काटते हो तो तुम कैसे हिन्दू हो सकते हो? अर्थात् किसी भी समय हरे वृक्ष नहीं काटने चाहिए। ये जीवधारी होते हुए मानव आदि के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। सम्पूर्ण समय में सोम-चन्द्रमा, अमावस तथा आदित्य-सूर्य ये तीनों उपस्थित रहेंगे ही। दिन में सूर्य रात्री में चन्द्रमा तथा अन्धेरी रात्रि में अमावया रहेगी। इन तीनों के बिना तो समय की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए हरे वृक्ष नहीं काटना चाहिए, सदा ही वर्जनीय है।

गहरण गहंते बहण बहंतै, निर्जल ग्यारस मूल बहंतै।

कांयरे मुरखा तैं पांलंग सेज निहाल बिछाई।

सूर्य चन्द्र ग्रहण के समय में, प्रातः सायं संध्या के समय में ;उस समय वेणा अर्थात् कूवें तालाब से जल लानें की बेला मेंद्ध निर्जला ग्यारस में तथा मूल नक्षत्र में ;यह नक्षत्र अनिष्टकारी होता है | हे मूर्ख! ऐसे समय में तुमने सुन्दर पलंग बिछा कर सांसारिक सुख के लिए प्रयत्नशील रहा। इन समय में गर्भाधान से होने वाली संतान शारीरिक, मानसिक, बौह्कि रूप से स्वस्थ पैदा नहीं होगी, दुष्ट स्वभाव जनित विकृत ही होगी।

जा दिन तेरे होम जाप न तप न किरिया, जान कै भागी कपिला गाई।

उन ग्रहणादि दिनों में तेरे को हवन, जप, तप, शुद्ध आचारादि क्रिया, शुभ कर्म करने चाहिए थे किन्तु ये कर्म तो तूने किए नहीं तो जान- समझ कर के भी घर में ही आयी हुई कामधेनु को तुमने भगा दिया।

कूड, तणों जे करतब कियो, ना तैं लाव न सायों।

इस समय में इस संसार में रह कर, झूठ बोलकर, कपटपूर्ण कर्तव्य किया,न तो उसमें कुछ लाभ हुआ और न ही अच्छा कहा जा सकता है। सत्य प्रिय हित कर वचनों की परवाह न कर के तूने अपने जीवन को नीचे धकेल दिया है।

भूला प्राणी आल बखाणी, न जंप्यों सुर रायों।

हे भूले हुए हिन्दू प्राणी! तूने यथार्थ की बात तो कभी नहीं कही, तथा वैसे ही व्यर्थ की आल-बाल बातें बकता रहा किन्तु देवाधिदेव विष्णु हरि का जप नहीं किया।

छंदै का तो बहुता भावै, खरतर को पतियायों।

स्वकीय प्रशंसा परक तथा परकीय निंदा परक बातें तो तुझे बहुत ही अच्छी लगी और किसी साहसी जन ने सच्ची यथार्थ बात तुम्हारी तथा परायी कही तो वह तुम्हें अच्छी नहीं लगी, उस पर तुमने विश्वास तक नहीं किया क्योंकि तुम्हें अपनी प्रशंसा और दूसरों की बुराई में ही आनन्द आता है।

हिव की बेला हिव न जाग्यों, शंक रह्यो कदरायों।

अनायास ही प्राप्त इस अमूल्य समय में ह्रदय को जगाया नहीं क्योंकि ह्रदय में ही तो जीव चेतन रहता है, वह तो वचनों द्वारा जगाया जा सकता है। यदा कदा किसी ने जगाने की चेष्टा भी की तो झट से तूने शंका खड़ी कर दी। जिसे तुम्हारी शंका कभी निर्मूल नहीं हो सकी और न ही जाग सका, उल्टा अभिमान के वशीभूत हो गया।

ठाढ़ी बेला ठार न जाग्यों, ताती बेला तायों।

सूर्यास्त की बेला ठण्डी होती है उसी प्रकार से मानव की वृद्धावस्था भी ठण्डी बेला ही है, क्योंकि शरीर प्रायः ठण्डा ही होता है। धीरे-धीरे समय आने पर बचा-खुचा तेज भी गमन कर जाता है, तब हम उसे मृत कहते हैं। जवानी अवस्था तो दुपहरी के सूर्य के समान गर्म बेला है। हे प्राणी! वृद्धावस्था में तो ठण्डा हो जाएगा, शक्ति क्षीण हो जाएगी। कुछ कर नहीं सकेगा और युवावथा में तो गर्मी के जोश में तैने कुछ ऐसा कार्य किया ही नहीं जो पार उतार दें यदि चाहता तो कर सकता था।

बिंबै बेला विष्णु न जंप्यो, ताछै का चीन्हौं कछु कमायो। 

बाल्यावस्था तो उगते हुए सूर्य की भांति अति सुन्दर निर्दोष तथा मनमोहक है व तो बिम्बै बेला है, इसमें तो सचेत होना भी कठिन है क्योंकि जब तक ना समझ है। हे प्राणी! तूने इन तीनों अवस्थाओं में ही भगवान का भजन नहीं किया तो फिर किसकी पहचान की और क्या कमाई की अर्थात् यह जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया।

अति आलस भोलावै भूला, न चीन्हों सुररायो।

आलस्य ही मानव का महान शत्रु है। हे प्राणी! अति आलस में पड़कर न तो तुमने स्वयं कुछ कल्याणकारी कार्य किया और न ही किसी और करने दिया। स्वयं तो भूल में रहा और दूसरों को भी भूल में डालता रहा। देवपति भगवान विष्णु का स्मरण- ध्यान नहीं किया तो यही जीवन में भूल की है।

पार ब्रह्या की सुध न जाणी, तो नागे जोग न पायों।

जब तक परब्रह्रा की सुधी नहीं जान सकता तब तक नंगे रहने से या धूणी धूकाने से अथवा भभूत लमाने से कोई योगी या हिन्दू नहीं हो सकता।

परशुराम के अर्थ न मूवा, ताकी निश्चै सरी न कायों।

परशुराम जी भगवान विष्णु के ही अवतार थे, उन्होंने इस संसार में अनेकानेक आश्चर्यजनक कार्य किए थे। अपने जीवन काल में ब्राह्रणत्व और क्षत्रियत्व दोनों धर्मों को एक साथ पूर्णता से निभाया। संसार में आयी हुई विपत्ति का विनाश कर के सद्मार्ग प्रशस्त किया यदि इस समय उनके मार्ग पर चल कर कोई व्यक्ति अपने प्राणों का बलिदान देता है तो उसी का ही जीवन सफल है और जो तपस्यामय कठोर मार्ग से घबराता है उसका कार्य निश्चित ही सफल नहीं हो सकेगा। इसलिए हे पुरोहित! हिन्दू तो वही है जो हिन्दू धर्म को धारण करता है, केवल नाम मात्र से कुछ भी नहीं होता।